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न॒हि वा॒मस्ति॑ दूर॒के यत्रा॒ रथे॑न॒ गच्छ॑थः। अश्वि॑ना सो॒मिनो॑ गृ॒हम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahi vām asti dūrake yatrā rathena gacchathaḥ | aśvinā somino gṛham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। वा॒म्। अस्ति॑। दू॒र॒के। यत्र॑। रथे॑न। गच्छ॑थः। अश्वि॑ना। सो॒मिनः॑। गृ॒हम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इसको करके अश्वियों के योग से क्या होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे रथों के रचने वा चलानेहारे सज्जन लोगो ! तुम (यत्र) जहाँ उक्त (अश्विना) अश्वियों से संयुक्त (रथेन) विमान आदि यान से (सोमिनः) जिसके प्रशंसनीय पदार्थ विद्यमान हैं, उस पदार्थविद्या वाले के (गृहम्) घर को (गच्छथः) जाते हो, वह दूरस्थान भी (वाम्) तुमको (दूरके) दूर (नहि) नहीं है॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस कारण अग्नि और जल के वेग से युक्त किया हुआ रथ अति दूर भी स्थानों को शीघ्र पहुँचाता है, इससे तुम लोगों को भी यह शिल्पविद्या का अनुष्ठान निरन्तर करना चाहिये॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

एतं कृत्वाऽश्विनोर्योगेन किं भवतीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे रथानां रचयितृचालयितारौ युवां यत्राश्विना रथेन सोमिनो गृहं गच्छथस्तत्र दूरस्थमपि स्थानं वा युवयोर्दूरके नह्यस्ति॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नहि) प्रतिषेधार्थे (वाम्) युवयोः (अस्ति) भवति (दूरके) दूर एव दूरके। स्वार्थे कन्। (यत्र) यस्मिन्। ऋचि तुनुघ० (अष्टा०६.३.१३३) इति दीर्घः। (रथेन) विमानादियानेन (गच्छथः) गमनं कुरुतम्। लट् प्रयोगोऽयम्। (अश्विना) अश्विभ्यां युक्तेन (सोमिनः) सोमाः प्रशस्ताः पदार्थाः सन्ति यस्य तस्य। अत्र प्रशंसार्थ इनिः। (गृहम्) गृह्णाति यस्मिंस्तत्॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यतोऽश्विवेगयुक्तं यानमतिदूरमपि स्थानं शीघ्रं गच्छति तस्मादेताभिरेतन्नित्यमनुष्ठेयम्॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! अग्नी व जलाने वेगयुक्त केलेला रथ (वाहन) अतिदूर स्थानीही तात्काळ पोहोचवितो. त्यासाठी तुम्हीही त्या शिल्पविद्येचे निरंतर अनुष्ठान करावे. ॥ ४ ॥